Saturday, September 9, 2017

जाने कितने मशहूर हुए !

किस्सा दर्द का है फिर भी सुनाता हूं इसे गुनगुना कर ।
वो रूठ कर खुश हो ले, मैं भी खुश होता हूँ उसे मनाकर ।

एक रात के मुसाफिर से तू इजहार-ए-मोहब्बत न कर ,
सुबह होते ही चला जाऊंगा मैं तो तुझे रुलाकर ।

पीले सोने की चमक से जलने वालों तुम्हें पता भी है ,
उसे निकाला गया है आग की गर्म भट्ठियों में तपाकर ।

बड़ी तहजीब का शहर है, यहां कुछ भी बेतरतीब नहीं ,
लाख गम हो दिल में, तब भी मिलिए सबसे मुस्कुराकर।

कुछ राज मेरे अगर तुझे भी पता है, फिर भी मुझे डर कैसा?
तुझ जैसे न जाने कितने मशहूर हुए हैं मेरे किस्से सुनाकर।

बेशक शौक फकीरों का है,लेकिन मजा शाहों का देती है
तुम भी शहंशाह बन जाओगे, जो कुछ है उसे लुटाकर।

मेरे मजहब से मेरी पहचान करने वालों धोखा हुआ है,
मैं खुद यहाँ तक पहुँचा हूँ मजहबी दीवारें गिराकर।

जिस शख्स को मैं पहचानता था उसके स्याह जमीर से,
अखबारों ने उसे ही चुनाव जिता दिया अच्छी खबरें चलाकर।

इस बाजार की रौनक महज दुकाने नहीं है 'कुमार'
बहुत पछताओगे जो चले गए ये खरीददार चेहरे घुमाकर।

13 comments:

  1. आपकी लिखी रचना  "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 27 सितंबर 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!


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    1. जी आपने इस लायक समझा इसके लिए धन्यवाद🙏

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  2. वाह कुमार साहब
    साधुवाद इस बेहतरीन रचना के लिए
    सादर

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    1. जी इस उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार🙏

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  3. प्रभावपूर्ण भावाभिव्यक्ति । बधाई ।

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    1. जी हार्दिक आभार आपका🙏

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  4. वाह ! बेहतरीन !! बहुत खूब ।

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  5. बेशक शौक फकीरों का है,लेकिन मजा शाहों का देती है
    तुम भी शहंशाह बन जाओगे, जो कुछ है उसे लुटाकर।

    बहुत बहुत बहुत ऊँचे ख़यालात और तसव्वुरात से सजे मिसरे। असरदार-ज़ोरदार ग़ज़ल। वाह

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    1. जी इन खूबसूरत विचारों के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏🙏

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